बहर-ए-आलाम में दिल डूब गया आज की शब एक महशर सा है सीने में बपा आज की शब है मुसल्लत मिरे एहसास की नन्ही लौ पर तंग होती हुई ज़ुल्मत की रिदा आज की शब यास वो छाई कि यूँ होता है महसूस मुझे सख़्त ना-ख़ुश है ख़ुदाई से ख़ुदा आज की शब हाए मायूस निगाहों की ये तख़्लीक़ कि है जिस तरफ़ देखिए इक दाम-ए-बला आज की शब नाज़-पर्वर्दा-ए-आग़ोश-ए-बहाराँ जो थे उन्ही अरमानों पे क्या वक़्त पड़ा आज की शब दिल कि बस्ता हुआ इक शहर था अरमानों का बे-तरह यूरिश-ए-हिज्राँ से लुटा आज की शब ऐ ग़म-ए-हिज्र-ए-दिल-आराम के मारे 'क़ाज़ी' वहशत-आमोज़ है क्यों घर की फ़ज़ा आज की शब