बहुत चुप हो शिकायत छोड़ दी क्या रह-ओ-रस्म-ए-मोहब्बत छोड़ दी क्या ये क्या अंदर ही अंदर बुझ रहे हो हवाओं से रक़ाबत छोड़ दी क्या मनाते फिर रहे हो हर किसी को ख़फ़ा रहने की आदत छोड़ दी क्या लिए बैठी हैं आँखें आँसूओं को सितारों की सियाहत छोड़ दी क्या ग़ुबार-ए-दश्त क्यों बैठा हुआ है मिरे आहू ने वहशत छोड़ दी क्या ये दुनिया तो नहीं मानेगी 'आसिम' मगर तुम ने भी हुज्जत छोड़ दी क्या