दश्त की तेज़ हवाओं में बिखर जाओगे क्या एक दिन घर नहीं जाओगे तो मर जाओगे क्या पेड़ ने चाँद को आग़ोश में ले रक्खा है मैं तुम्हें रोकना चाहूँ तो ठहर जाओगे क्या ये ज़मिस्तान-ए-त'अल्लुक़ ये हवा-ए-क़ुर्बत आग ओढ़ोगे नहीं यूँही ठिठर जाओगे ये तकल्लुम भरी आँखें ये तरन्नुम भरे होंट तुम इसी हालत-ए-रुस्वाई में घर जाओगे क्या लौट आओगे मिरे पास परिंदे की तरह मिरी आवाज़ की सरहद से गुज़र जाओगे क्या छोड़ कर नाव में तन्हा मुझे 'आसिम' तुम भी किसी गुमनाम जज़ीरे पे उतर जाओगे क्या