बहुत दिन से बताना चाहता हूँ तुम्हें मैं ग़ाएबाना चाहता हूँ ब-ज़ाहिर रूठ जाना चाहता हूँ मुक़द्दर आज़माना चाहता हूँ तुम्हें फ़ुर्सत नहीं है लम्हा भर की इधर मैं इक ज़माना चाहता हूँ मुझे भी प्रेम है उर्दू से यारो ग़ज़ल से आब-ओ-दाना चाहता हूँ मुझे डर है 'नईम' इस बार मैं भी तअ'ल्लुक़ ताजिराना चाहता हूँ