बहुत दिनों से है जी में सवाल पूछूँगा मैं तेरे आइने से तेरा हाल पूछूँगा बहुत हसीं है ये दुनिया मगर ज़वाल के साथ ख़ुदा से हश्र में हुस्न-ए-ज़वाल पूछूँगा सुकूत-ए-शाम से क्यूँ निस्बत-ए-तबीअ'त है सुकूत-ए-शाम से वज्ह-ए-मलाल पूछूँगा तू बे-मिसाल है तेरी मिसाल क्या पूछूँ मैं कुछ नहीं मगर अपनी मिसाल पूछूँगा मिरा ख़याल है मेरी निगाह में है जमाल तिरे जमाल का क्या है ख़याल पूछूँगा ख़राब अक्स हैं शीशा-ब-दस्त क्यूँ साक़ी क़ुसूर-ए-बादा-ए-जाम-ए-सिफ़ाल पूछूँगा फ़ज़ा उदास है जंगल की साएँ साएँ है 'शाज़' मैं किस से वहशत-ए-चश्म-ए-ग़ज़ाल पूछूँगा