रास्ते अपनी नज़र बदला किए हम तुम्हारा रास्ता देखा किए अहल-ए-दिल सहरा में गुम होते रहे ज़िंदगी बैठी रही पर्दा किए एहतिमाम-ए-दार-ओ-ज़िंदाँ की क़सम आदमी हर अहद ने पैदा किए हम हैं और अब याद का आसेब है उस ने वादे तो कई ईफ़ा किए हाए-रे वहशत कि तेरे शहर का हम सबा से रास्ता पूछा किए