बहुत घबरा रहे हो रौशनी से मोहब्बत हो गई है क्या किसी से पता देती है ये चेहरे की रंगत ख़ुदा ख़ुश है तो बस इक आप ही से शनासाई निकल आई पुरानी नहीं तो क्यों लिपटता अजनबी से ज़बाँ से यूँ अदा होती है उर्दू सुरीली तान जैसे बाँसुरी से क़दम दोनों तरफ़ से बढ़ चुके हैं मोहब्बत होगी रुस्वा वापसी से हँसी आई कभी यलग़ार-ए-ग़म पर छलक आईं कभी आँखें ख़ुशी से बहुत बा-ज़र्फ़ हूँ लेकिन पशेमाँ समुंदर बोल उट्ठा तिश्नगी से हिफ़ाज़त कर न पाए 'नज़्र' दिल की चुराया ही गया इस सादगी से