बहुत हसीन थे तुम और बहुत जवाँ थे हम इक इज़्तिराब-ए-मुसलसल की दास्ताँ थे हम अब इस जगह पे हैं कुछ और चाहने वाले वो एक बाग़ का गोशा कि कल जहाँ थे हम हमारी आँखों से ज़ुल्मत का दिल लरज़ता था तुलूअ'-ए-महर-ए-मुनव्वर के राज़-दाँ थे हम हमारे हाथों से अब तक महक सी आती है ये कल की बात है फूलों के दरमियाँ थे हम मचलती रहती थी दिल में उड़ान की ख़्वाहिश ख़ुद अपने सर पे ख़यालों का आसमाँ थे हम बिखर गए तो भटकते हुए मुसाफ़िर हैं वो जिन रुतों में चले थे तो कारवाँ थे हम