बहुत ही मो'तबर रोया ग़म-ए-शह में अगर रोया फ़लक से जब घटा बरसी मिरा हर बाम-ओ-दर रोया हुआ जब क़त्ल परवाना तो क़ातिल ख़ुद शरर रोया हँसा था आसमानों में ज़मीं पर क्यों बशर रोया सर-ए-सहरा बहुत ख़ुश था सर-ए-दरिया मगर रोया पके फल तोड़ लेने से ख़बर कब तक शजर रोया न जाने किस जगह पहुँचे जहाँ ख़ुद पर 'ख़िज़र' रोया