बहुत हो चुका खेल अब ख़त्म हो हुए सब से बेज़ार सब ख़त्म हो तिरी राह में फिर से बिछ जाएँगे ये कार-ए-जहाँ ये ग़ज़ब ख़त्म हो तुम्हें भी दिखाएँगे वो चीज़ हम तलाश-ए-दिल-ए-ख़ुश-तलब ख़त्म हो शिफ़ा तो मुक़द्दर है बीमार का अगर मुक़तज़ा-ए-मतब ख़त्म हो अभी सर झुकाने में लज़्ज़त नहीं अदाकारी-ए-रोज़-ओ-शब ख़त्म हो 'इबादी' उन्हों ने कहा आज फिर किसी तरह ये बे-अदब ख़त्म हो