बहुत ज़मीन बहुत आसमाँ मिलेंगे तुम्हें प हम से ख़ाक के पुतले कहाँ मिलेंगे तुम्हें ख़रीद लो अभी बाज़ार में नए हैं हम कि बा'द में तो बहुत ही गराँ मिलेंगे तुम्हें अब इब्तिदा-ए-सफ़र है तो जो है कह सुन लो हम उस के बा'द न जाने कहाँ मिलेंगे तुम्हें जो रास्ते में मिले कोई मस्जिद-ए-वीराँ तो हम वहीं कहीं वक़्त-ए-अज़ाँ मिलेंगे तुम्हें हम इंतिहा में मिलेंगे गर इब्तिदा में नहीं नहीं वहाँ भी तो फिर दरमियाँ मिलेंगे तुम्हें ठहर ही जाएँगे आख़िर कहीं जनाब-'एहसास' पर अपने शेर में यूँ ही रवाँ मिलेंगे तुम्हें