बला से हो शाम की सियाही कहीं तो मंज़िल मिरी मिलेगी उधर अँधेरे में चल पड़ूँगा जिधर मुझे रौशनी मिलेगी हुजूम-ए-महशर में कैसा मिलना नज़र-फ़रेबी बड़ी मिलेगी किसी से सूरत तिरी मिलेगी किसी से सूरत मिरी मिलेगी तुम्हारी फ़ुर्क़त में तंग आ कर ये मरने वालों का फ़ैसला है क़ज़ा से जो हम-कनार होगा उसे नई ज़िंदगी मिलेगी क़फ़स से जब छुट के जाएँगे हम तो सब मिलेंगे ब-जुज़-नशेमन चमन का एक एक गुल मिलेगा चमन की इक इक कली मिलेगी तुम्हारी फ़ुर्क़त में क्या मिलेगा तुम्हारे मिलने से किया मिलेगा 'क़मर' के होंगे हज़ार-हा ग़म रक़ीब को इक ख़ुशी मिलेगी