बहुत क़रीब है वो हुस्न-ए-आफ़्ताब-नुमा विसाल-ए-यार भी होने लगा अज़ाब-नुमा तमाम फूलों की ख़ुशबू का इम्तिज़ाज है वो दयार-ए-हुस्न में इक शख़्स है गुलाब-नुमा हर एक लफ़्ज़ की क़िस्मत उसी में लिक्खी है वो इक हसीन सा चेहरा जो है किताब-नुमा ख़ुमार-ए-बादा से है मुख़्तलिफ़ मिज़ाज उस का छिटक रहा है ये आँखों से क्या शराब-नुमा हम उस के चेहरे से उस को समझ नहीं सकते तअस्सुर-ए-रुख़-ए-रंगीँ भी है नक़ाब-नुमा जुनूँ-नवाज़ है ज़िक्र-ए-ख़िरद ही आख़िर क्यों तुम्हारे लहजे में क्या चीज़ है सराब-नुमा