जज़्बा-ए-इश्क़ जब उभर आया दूर तक तू मुझे नज़र आया उस को इतना यक़ीन है मुझ पे जब भी बहका है वो इधर आया दिल को दिल से है उन्सियत ऐसी उस को सोचा तो वो नज़र आया इक क़यामत का सामना था जब बे-ख़याली में वो नज़र आया भीगी पलकों से ख़्वाब बुनता था अब हक़ीक़त पे दिल उतर आया ज़िंदगी उस के इश्क़ में गुज़री तब मोहब्बत में ये असर आया 'सैफ़' अक्सर हुआ है ऐसा भी वो न आया तो दिल भी भर आया