बहुत कुछ लिखा है बहुत कुछ लिखेंगे ये तय है कि अहल-ए-क़लम ही रहेंगे नहीं हम नसीबों से मायूस बिल्कुल जो हम बन न पाए वो बच्चे बनेंगे गँवाए हैं औक़ात अपने जिन्हों ने वही उम्र भर हाथ मलते रहेंगे रहेगा जो यूँही सितम का तसलसुल तो तंग आ के हम भी बग़ावत करेंगे अगर अद्ल से नस्ल महरूम होगी तो फिर देखना लोग रहज़न बनेंगे जो कहते हैं कहते रहें अहल-ए-दुनिया मगर हम तो 'नाक़िद' सदा सच कहेंगे