बहुत मुश्किल है दरिया पार जाना मगर है कुफ़्र हिम्मत हार जाना बहुत मुमकिन है क़िस्मत मुंतज़िर हो तो फिर ख़्वाबों में भी बेदार जाना न जाना हल्क़ा-ए-ज़ुल्मत में चाहे पड़े मक़्तल पस-ए-दीवार जाना ये कह कर वो चला सू-ए-शहादत ख़ुदा के पास क्या बीमार जाना अमीर-ए-शहर का हुस्न-ए-तदब्बुर रक़ीबों को भी अपना यार जाना मुक़द्दर था जो बच आए सलामत दिल-ए-इंकार को इक़रार जाना तमन्ना जीत की हो ज़िंदगी में तो हर महफ़िल में ले कर हार जाना अगर मुंसिफ़ बना वो ख़ुद न होगा ये राज़ उस ने सर-ए-दरबार जाना ये पैहम मुफ़लिसी जिन का करम है उन्हीं को हम ने पालनहार जाना लब-ओ-रुख़्सार पर ताले पड़े हैं तो क्या 'ख़ालिद' पए दीदार जाना