बहुत मुश्किल सही लेकिन ब-सद मुश्किल भी देखेंगे कि अनवार-ए-हक़ीक़त तालिबान-ए-दिल भी देखेंगे ख़ुदा तौफ़ीक़ दे हम को तो दिल को दिल भी देखेंगे इन्हीं आँखों से हम आसान हर मुश्किल भी देखेंगे न कामिल ज़ौक़-ए-नज़ारा न शौक़-ए-जादा-पैमाई अगर कामिल तलब है तो मज़ाक़-ए-दिल भी देखेंगे वो कश्ती आज जो टकरा रही है मौज-ए-तूफ़ाँ से उसी कश्ती को हम इक दिन सर-ए-साहिल भी देखेंगे दर-ए-हैदर पे 'क़ैसर' सर झुका किसरा का क़ैसर का गदा-ए-कू-ए-हैदर हुस्न-ए-मुस्तक़बिल भी देखेंगे