बहुत पछताओगे तुम दर्द-मंदों से ख़फ़ा हो कर कि गुल मुरझा के रह जाता है ख़ारों से जुदा हो कर कहाँ जाना था मुझ को और कहाँ ला कर किया रुस्वा निगाह-ए-शौक़ ने धोका दिया है रहनुमा हो कर सितम कीजे जफ़ा कीजे मगर इंसाफ़ से कहिए ये नाराज़ी भला ज़ेबा है बंदे से ख़ुदा हो कर बहारें जा रही थीं जब ख़िज़ाँ के साथ गुलशन से गुलों की आँख में भर आए आँसू इल्तिजा हो कर ज़माना गर क़यामत भी उठाता है उठाने दो मगर उठ कर न जाओ मेरे पहलू से ख़फ़ा हो कर ख़याल-ए-दोस्त ख़िज़्र-ए-राह है दश्त-ए-मोहब्बत में जुनूँ हमराह ले जाता रहा है रहनुमा हो कर ख़ुदारा रहम कर पैमान-ए-उल्फ़त बाँधने वाले कहाँ जाऊँगा मैं आख़िर तिरे ग़म से रिहा हो कर न बन जाए तुम्हारी ज़िंदगी का आसरा कोई न इतराओ किसी की ज़िंदगी का आसरा हो कर मुझे तूफ़ान ले जाता जहाँ मेरा मुक़द्दर था डुबोया है मिरी कश्ती को तुम ने नाख़ुदा हो कर हमारी देखा-देखी तुम वफ़ाओं पर न आ जाना ज़माने से हमें क्या मिल रहा है बा-वफ़ा हो कर बयाँ क्या हाल-ए-दिल हो जब मोहब्बत का ये आलम है शिकायत भी मिरे होंटों पे आती है दुआ हो कर अजब दस्तूर है ऐ 'राज' दुनिया-ए-मोहब्बत का जफ़ाएँ सामने आईं वफ़ाओं की सज़ा हो कर