ग़ुबार-ए-नूर है या कहकशाँ है या कुछ और ये मेरे चारों तरफ़ आसमाँ है या कुछ और जो देखा अर्श-ए-तसव्वुर से बारहा सोचा ये काएनात भी अक्स-ए-रवाँ है या कुछ और मैं खोए जाता हूँ तन्हाइयों की वुसअत में दर-ए-ख़याल दर-ए-ला-मकाँ है या कुछ और फ़िराक़-ए-उम्र की हद क्यूँ लगाई है उस ने मिरा वजूद ही उस को गिराँ है या कुछ और अज़ल से ता-ब-अबद जस्त एक साअत की यही बस अर्सा-ए-कार-ए-जहाँ है या कुछ और