बहुत सरशार था अपने सरासर जोश में दरिया तमांचे मौज के खाए तो आया होश में दरिया डुबोया जोश-ए-वहशत में हमें सहरा-नवर्दी ने बहाया आबलों ने पाँव के पा-पोश में दरिया न छेड़ ऐ सोज़न-ए-मिज़्गाँ मिरे दिल के फफोले को कि हिकमत से किया है बंद इस सर-पोश में दरिया जहाज़-ए-उल्फ़त-ए-दिल का निगहबाँ है ख़ुदा ही अब समुंदर की तरह आया है ग़म का जोश में दरिया गला काटा छुरे से अपना मिज़्गाँ के तसव्वुर में बहाया शब लहू का हम ने बाला-पोश में दरिया भरोसा कुछ नहीं सैल-ए-फ़ना की आश्नाई का कहे है ये हबाबों के हमेशा गोश में दरिया जो छोड़ीं मछलियाँ मेहंदी लगा कर उस ने पाँव में कफ़-ए-पा का पसीना बन गया पा-पोश में दरिया मिरी अश्कों की तुग़्यानी 'हया' क्या सर उठाएँगी समुंदर सा निहाँ है चर्ख़ के सर-पोश में दरिया