बुलबुल ने कुढ़ाया न ग़म-ए-गुल ने रुलाया By Ghazal << बहुत सरशार था अपने सरासर ... बस कि मुझ से वो सनम इन दि... >> बुलबुल ने कुढ़ाया न ग़म-ए-गुल ने रुलाया हम को तो फ़क़त उस के तग़ाफ़ुल ने रुलाया साक़ी जो न था यार तो शब मजलिस-ए-मय में ता-सुब्ह मुझे शीशे के क़ुलक़ुल ने रुलाया गुलशन में बहार आई है गुल जाम-ब-कफ़ हैं इस फ़स्ल में साक़ी के तसाहुल ने रुलाया Share on: