बहुत उकता गया हूँ अपने जी से मिरा दिल भर गया है हर किसी से ब-ज़ो'म-ए-ख़ुद अजल से मैं लड़ा हूँ ब-ज़ो'म-ए-ख़ुद मैं हारा ज़िंदगी से न जाने किस गली में खो गया हूँ मैं कट कर आप अपनी ज़िंदगी से मिरा माज़ी मिरी यादें कहाँ हैं ये पूछूँ अब तो क्या पूछूँ किसी से न जाने कितने उनवाँ रश्क करते जो अपनी दास्ताँ कहते किसी से जो आए जिस के जी में 'दर्द' कह ले सुनूँगा हर किसी की मैं ख़ुशी से