बहुत वसीअ' था लेकिन सिमट गया हूँ मैं ब-यक-क़लम कई हिस्सों में बट गया हूँ मैं मिरी बिसात है इक मौजा-ए-हवा या'नी मिसाल-ए-सफ़हा-ए-तारीख़ उलट गया हूँ मैं समझ रहा है उधर वो सुतून-ए-चर्ख़-ओ-ज़मीं इधर ये हाल कि महवर से हट गया हूँ मैं तवालत-ए-सफ़र-ए-दश्त यक-क़दम ठहरी कि फिर शुरूअ' की जानिब पलट गया हूँ मैं ज़रूर 'इश्क़ में आमेज़िश-ए-हवस है 'ज़ुबैर' कभी-कभार जो ख़ुद से लिपट गया हूँ मैं