ज़द में हालात के मत पूछें कहाँ तक पहुँचे हम ने सोचा भी न था आज जहाँ तक पहुँचे जाने कैसा था सफ़र कौन सी साअ'त निकले ज़ीस्त सहमी ही नज़र आई जहाँ तक पहुँचे क्यों किसी से कहें हर बात कोई क्या समझे क्या ज़रूरी है कि हर बात ज़बाँ तक पहुँचे कोई तो हज़रत-ए-नासेह से बस इतना पूछे रिंद पहुँचे जहाँ क्या आप वहाँ तक पहुँचे राज़ मुबहम हुआ और जितना उठाया पर्दा महरम-ए-राज़ कहाँ राज़-ए-निहाँ तक पहुँचे वो निगाहों के तसादुम से छिड़ा जो क़िस्सा किस को मालूम कि वो बात कहाँ तक पहुँचे आरज़ूओं के तआ'क़ुब में बढ़े जितना 'ज़ुबैर' ज़िंदगी रक़्स-ए-बहाराँ थी जहाँ तक पहुँचे