बैठे बैठे जो हम ऐ यार हँसे और रोए आ गया याद तो इक बार हँसे और रोए शेर-ए-तर पढ़ने से यारों में हमें क्या हासिल मगर इतना है कि दो-चार हँसे और रोए शादी ओ ग़म की जो उठ जाए जहाँ से रह-ओ-रस्म फिर तो कोई भी न ज़न्हार हँसे और रोए ना-तवानी ने किया उस को तो नक़्श-ए-क़ालीं क्या तिरी चश्म का बीमार हँसे और रोए 'मुसहफ़ी' रात में अफ़्साना-ए-दिल कहता था सुन के हम-साए कई बार हँसे और रोए