बैठे हैं जहाँ साक़ी पैमाना-ए-ज़र ले कर उस बज़्म से उठ आए हम दीदा-ए-तर ले कर यादों से तिरी रौशन मेहराब-ए-शब-ए-हिज्राँ ढूँढेंगे तुझे कब तक क़िंदील-ए-क़मर ले कर क्या हुस्न है दुनिया में क्या लुत्फ़ है जीने में देखे तो कोई मेरा अंदाज़-ए-नज़र ले कर होती है ज़माने में किस तरह पज़ीराई निकलो तो ज़रा घर से इक ज़ौक़-ए-सफ़र ले कर राहें चमक उट्ठेंगी ख़ुर्शीद की मशअ'ल से हमराह सबा होगी ख़ुश्बू-ए-सहर ले कर मख़मल सी बिछा देंगे क़दमों के तले साहिल दरिया उबल आएँगे सद-मौज-ए-गुहर ले कर पहनाएँगे ताज अपना पेड़ों के घने साए निकलेंगे शजर अपने ख़ुश-रंग समर ले कर लपकेंगे गले मिलने सर्व और सनोबर सब उठेंगे गुलिस्ताँ भी शाख़-ए-गुल-ए-तर ले कर हँसते हुए शहरों की आवाज़ बुलाएगी लब जाम के चमकेंगे सौ शो'ला-ए-तर ले कर अफ़्लाक बजाएँगे साज़ अपने सितारों का गाएँगे बहुत लम्हे अन्फ़ास-ए-शरर ले कर ये आलम-ए-ख़ाकी इक सय्यारा-ए-रौशन है अफ़्लाक से टकरा दो तक़दीर-ए-बशर ले कर