आईने पर जमी हुई हैरत को देखना क्या बार बार एक ही सूरत को देखना हासिल ये है कि एक ही है सिफ़्र का हिसाब मनफ़ी को देखना कभी मुसबत को देखना ऐ वक़्त तू कहीं भी किसी का हुआ है क्या क्या तुझ को देखना तिरी साअत को देखना दानिश्वरान-ए-वक़्त हों जब महव-ए-गुफ़्तुगू चुप रह के दरमियाँ मिरी वहशत को देखना पहले तो काम देखना मेरा वरा-ए-वक़्त फिर काम में दबी हुई फ़ुर्सत को देखना