बैठे थे लोग पहलू-ब-पहलू पिए हुए इक हम थे तेरी बज़्म में आँसू पिए हुए देखा जिसे भी उस की मोहब्बत में मस्त था जैसे तमाम शहर हो दारू पिए हुए तकरार बे-सबब तो न थी रिंद ओ शैख़ में करते भी क्या शराब थे हर दो पिए हुए फिर क्या अजब कि लोग बना लें कहानियाँ कुछ मैं नशे में चूर था कुछ तू पिए हुए यूँ उन लबों के मस से मोअत्तर हूँ जिस तरह वो नौ-बहार-ए-नाज़ था ख़ुशबू पिए हुए यूँ हो अगर 'फ़राज़' तो तस्वीर क्या बने इक शाम उस के साथ लब-ए-जू पिए हुए