बैठी थी किसी शाख़ पे जब रात की तितली उड़ती थी हवाओं में ख़यालात की तितली नादान से बच्चे ने उसे क़ैद किया था कमज़ोर हुई थी मिरे जज़्बात की तितली यक-लख़्त हुई जिस्म के महलात में रू-पोश मजबूर बहुत थी मिरे हालात की तितली जज़्बों की महक रूह के फूलों में नहीं थी थी वक़्त की हर शाख़ पे ख़तरात की तितली लोगों ने तरह-दार गुलाबों को छुपाया जब मैं ने उड़ाई थी हिदायात की तितली शब-भर मिरे अफ़्कार की दहलीज़ में 'जामी' थक-हार के सोती रही जज़्बात की तितली