बाज़ भी आओ याद आने से क्या मिलेगा हमें सताने से ख़ून-ए-दिल से दिए जलाए हैं हो के गुज़रो ग़रीब-ख़ाने से कैसी बे-रौनक़ी है महफ़िल में एक इस के यहाँ न आने से दर-ए-दिल वा किया तो वो आए कौन आता है यूँ बुलाने से तुझ से बिछड़े तो कब ये सोचा था इस क़दर होंगे बे-ठिकाने से हम तो हैरान हैं कि क्यूँ हम पर ज़ुल्म है और हर बहाने से रहने वाला ही जब न हो 'आज़र' फ़ाएदा क्या है घर सजाने से