बज़्म-ए-ख़ूबाँ से उठे दार-ओ-रसन तक पहुँचे आप ही आप मिरे पाँव गगन तक पहुँचे एक मैं ही था जो सय्याद की झोली में गिरा उड़ गए सारे परिंदे जो चमन तक पहुँचे सिर्फ़ दिल ही को जलाना तो कोई बात नहीं इश्क़ इक आग अगर है तो बदन तक पहुँचे बंदिशों ही की नुमाइश है हयात-ए-आदम एक धागे से बंधे और कफ़न तक पहुँचे उम्र कमतर ही से कोशिश थी मुसलसल जारी शे'र अपना भी कोई तर्ज़-ए-सुख़न तक पहुँचे आख़िरी एक ये ख़्वाहिश है मिरे सीने में ख़ाक जब मेरी उड़े अपने वतन तक पहुँचे शर्म का फूल मैं आँखों से तेरी चुन लूँगा इस से पहले कि झड़े और दहन तक पहुँचे आसमानों को दबा लेगा वो पैरों के तले शौक़ इंसान का गर उस की लगन तक पहुँचे क्या ज़रूरत कि करें चल के तवाफ़-ए-दुनिया फ़िक्र अपनी ये अगर गंग-ओ-जमन तक पहुँचे सोच लेना था तुझे इतना कि क्या होगा 'नदीम' आज का शे'र अगर तेरे सजन तक पहुँचे