हम ढूँडते हैं बाग़ में इस गुल-एज़ार को जल्वा ने जिस के रंग दिया है बहार को तुम जाते हो तो जाओ ख़ुदा के लिए मगर ले जाओ अपने साथ न सब्र-ओ-क़रार को हम हुस्न-ए-एतिक़ाद से समझे चढ़ाए फूल गुल कर दिया जो उस ने चराग़-ए-मज़ार को दी किस ने इस को जा के नवेद-ए-क़ुदूम-ए-यार है नागवार बाग़ से जाना बहार को उस बुत में नूर-ए-क़ुदरत-ए-ख़ालिक़ है मुस्ततर पत्थर ने क्या छुपाया है दिल में शरार को 'मुश्ताक़' ग़म को पास न आने दे ज़ीनहार ख़ुश ख़ुश गुज़ार ज़िंदगी-ए-मुस्तआ'र को