बज़्म-ए-नशात-ओ-ऐश का सामाँ लिए हुए आई सबा बहार-ए-गुलिस्ताँ लिए हुए उड़ता फिरा जुनून ये सामाँ लिए हुए या'नी हमारे जेब-ओ-गरेबाँ लिए हुए कब तक जियेगा दार-ए-फ़ना में बता तो दे सर में ग़ुरूर-ए-आलम-ए-इम्काँ लिए हुए मेरे जुनून-ए-इश्क़ की वुसअ'त न पूछिए है ज़र्रा ज़र्रा ज़ोर-ए-बयाबाँ लिए हुए जिस को उठा सके न पहाड़ और न आसमाँ वो बार-ए-ग़म हैं हज़रत-ए-इंसाँ लिए हुए मेरे लिए तो बहर-ए-अलम का ये हाल है जो मौज उठी वो आई है तूफ़ाँ लिए हुए इक मजमा-ए-बहार-ओ-ख़िज़ाँ है मिरा वजूद फिरता हूँ साथ गर्दिश-ए-दौराँ लिए हुए आसाँ हो क्यूँ न अहल-ए-तजस्सुस को राह-ए-शौक़ हैं अपने साथ ज़ौक़-ए-फ़रावाँ लिए हुए फेरी लगा रहा हूँ ख़रीदार की है फ़िक्र फिरता हूँ सर पे मैं ग़म-ए-दौराँ लिए हुए बहर-ए-नियाज़-ए-नाज़ हम आए हैं ले के दिल दिल में हुजूम-ए-हसरत-ओ-अरमाँ लिए हुए 'ख़ुशतर' मुझे है नाज़ कि अल्लाह के हुज़ूर जाऊँगा दिल में दौलत-ए-ईमाँ लिए हुए