जो है याँ अासाइश-ए-रंज-ओ-मेहन में मस्त है कूचा-ए-जानाँ में हम हैं क़ैस बन में मस्त है तेरे कूचे में है क़ातिल रक़्स-गाह-ए-आशिक़ाँ कोई ग़लताँ सर-ब-कफ़ कोई कफ़न में मस्त है मय-कदे में बादा-कश बुत-ख़ाने में हैं बुत-परस्त जो है आलम में वो अपनी अंजुमन में मस्त है निकहत-ए-ज़ुल्फ़-ए-सनम से याँ मोअत्तर है दिमाग़ कोई मुश्क-चीं कोई मुश्क-ए-ख़ुतन में मस्त है है कोई महव-ए-नमाज़ और ख़ुम-कदे में कोई मस्त दिल मिरा इश्क़-ए-बुतान-ए-दिल-शिकन में मस्त है है मुसलमाँ को हमेशा आब-ए-ज़मज़म की तलाश और हर इक बरहमन गंग-ओ-जमन में मस्त है अक्स-ए-रू-ए-शम्अ-रू है मेरे दिल में जा-गुज़ीं दिल मिरा इस आतिश-ए-लम'आ-फ़गन में मस्त है है मिरा हर शेर-ए-तर 'बहराम' कैसा पुर-असर जिस को देखो मज्लिस-ए-अहल-ए-सुख़न में मस्त है