बक़ा की फ़िक्र करो ख़ुद ही ज़िंदगी के लिए ज़माना कुछ नहीं करता कभी किसी के लिए नहीं है वक़्फ़ अगर ज़िंदगी किसी के लिए तो हर क़दम पे तबाही है आदमी के लिए कमाल जब है कि उस राह में चराग़ जलाओ जो मुद्दतों से तरसती है रौशनी के लिए फ़रेब-ए-शौक़ फ़रेब-ए-नज़र फ़रेब-ए-ख़याल हज़ार दाम हैं इक ज़ौक़-ए-आगही के लिए तुम्हारी बज़्म में क्या शिकवा-ए-ग़म-ए-हस्ती यहाँ तो साँस भी ने'मत है ज़िंदगी के लिए गुलों ने आग लगा दी तमाम गुलशन में ज़रा सी देर के लुत्फ़-ए-शगुफ़्तगी के लिए कोई तो बात तिरे आस्ताँ में है वर्ना हज़ार दर थे मिरे ज़ौक़-ए-बंदगी के लिए वहाँ हवाओं के रुख़ भी निगाह में रखना जहाँ चराग़ जलाते हो रौशनी के लिए न जाने कितनी बहारों का ख़ूँ हुआ होगा निगार-ख़ाना-ए-आलम की दिलकशी के लिए फ़रोग़-ए-बादा नहीं है हरीफ़-ए-तिश्ना-लबी कुछ और लाओ मिरे ज़ौक़-ए-मय-कशी के लिए निगाह-ए-बर्क़ है जब से मिरे चमन की तरफ़ दुआएँ माँग रहा हूँ कली कली के लिए जो उन के ग़म से हो निस्बत तो हर जहान में 'कैफ़' मसर्रतों का ख़ज़ाना है आदमी के लिए