ग़ैर की बद-गुमानियों पे न जा बे-हक़ीक़त कहानियों पे न जा खींच लेता है दामन-ए-एहसास फूल की बे-ज़बानियों पे न जा उस की ग़ारत-गरी को ध्यान में रख अक़्ल की पासबानियों पे न जा सब्र की दोस्ती को रख मलहूज़ जब्र की हुक्मरानियों पे न जा ख़ुब्स-ए-बातिन के ज़हर से भी बच महज़ शीरीं-बयानियों पे न जा मुस्तक़िल ज़ुल्म का मुदावा कर आरज़ी मेहरबानियों पे न जा रूह की भी पुकार सुन 'अख़्तर' जिस्म की कामरानियों पे न जा