बख़्श दी हाल-ए-ज़बूँ ने जल्वा-सामानी मुझे काश मिल जाए ज़माने की परेशानी मुझे ऐ निगाह-ए-दोस्त ऐ सरमाया-दार-ए-बे-ख़ुदी होश आता है तो होती है परेशानी मुझे खुल चुका हाँ खुल चुका दिल पर तिरा रंगीं फ़रेब दे न धोका ऐ तिलिस्म-ए-हस्ती-ए-फ़ानी मुझे फिर न साबित हो कहीं नंग-ए-बयाबाँ जिस्म-ए-राज़ सोच कर करना जुनूँ माइल ये उर्यानी मुझे मुंतहा-ए-ज़ौक़-ए-सज्दा ये कि इक फ़रेब कुफ़्र तक ले आई तक्मील-ए-मुस्लमानी मुझे मंज़िलों 'एहसान' पीछे रह गए दैर ओ हरम ले चला जाने कहाँ सैलाब-ए-हैरानी मुझे