हर्फ़ मा'नी से जुदा हो जैसे ज़िंदगी कोई सज़ा हो जैसे बा'द मुद्दत के ये महसूस हुआ दर्द ही दिल की दवा हो जैसे और क्या होगी फ़ज़ा-ए-फ़िरदौस तेरे कूचे की फ़ज़ा हो जैसे उन निगाहों ने जो पुर्सिश की है आज हर ज़ख़्म हरा हो जैसे आप से मिल के तो कुछ ऐसा लगा फ़ासला और बढ़ा हो जैसे आह क्या उम्र गुज़ारी हम ने नक़्श बन बन के मिटा हो जैसे काँप जाता हूँ उक़ूबत से 'ज़िया' अब मुझे ख़ौफ़-ए-ख़ुदा हो जैसे