क्यूँ तू ने वा किया था बंद-ए-क़बा चमन में उड़ती फिरे है गुल से बुलबुल ख़फ़ा चमन में हर सम्त अब सबा जो फिरती है ख़ाक उड़ाती बुलबुल के पर पड़े हैं क्या जा-ब-जा चमन में नर्गिस की आँख तुझ पर पड़ती है बे-तरह सी मत वक़्त-ए-शाम जाना बहर-ए-ख़ुदा चमन में जूँ लाला दाग़-ए-दिल याँ फिर जल उठा है शायद जाता है सैर करने वो बेवफ़ा चमन में जेब अपना गुल ने फाड़ा बुलबुल मुई 'मुरव्वत' क्यूँ अपने ग़म का क़िस्सा तू ने कहा चमन में