बाक़ी है उम्मीद ज़रा सी ऐ पर्दा-वर दीद ज़रा सी जिन में ज़ेहानत थी वो करते क्यों अंधी तक़लीद ज़रा सी मैं बीमार-दिल बच जाता कर देते ताकीद ज़रा सी और भी ताज़ा-दम करती है फ़न को मिरे तन्क़ीद ज़रा सी दुनिया भर के कुफ़्र पे तन्हा हावी है तौहीद ज़रा सी दिल की सुनूँगा लेकिन पहले अक़्ल करे ताईद ज़रा सी 'फ़ैज़' जो तीसों रोज़ा रक्खे क्यों वो मनाएँ ईद ज़रा सी