बाक़ी है वही शोख़ी-ए-गुफ़्तार अभी तक दीवाने पहुँचते हैं सर-ए-दार अभी तक सर पर है बहारों के मिरे ख़ून का सहरा आलूदा लहू से हैं गुल ओ ख़ार अभी तक आज़ादी-ए-कामिल के तसव्वुर में है इंसाँ अपने ही ख़यालों में गिरफ़्तार अभी तक गाते हैं उख़ुव्वत के तराने तो शब ओ रोज़ बर्बादी-ए-आलम को हैं तय्यार अभी तक बेगाना बने लाख मोहब्बत से ज़माना है जिंस-ए-गराँ-माया तिरा प्यार अभी तक होती है ख़यालों ही में तंज़ीम चमन की किरदार ही बदले हैं न गुफ़्तार अभी तक मासूम है मासूम बहुत अम्न की देवी क़ब्ज़े में लिए ख़ंजर-ए-ख़ूँ-ख़ार अभी तक 'आरिफ़' ये ज़माना तो बदलना ही पड़ेगा उट्ठो भी है इस की वही रफ़्तार अभी तक