बल पड़े चितवन पे अबरू तन के ख़ंजर हो गए ज़िक्र-ए-वस्ल आते ही वो जामे से बाहर हो गए बन गए वो हर्फ़-ए-मतलब सुन के तस्वीर-ए-हया सुर्ख़ फ़र्त-ए-शर्म से रुख़्सार-ए-अनवर हो गए जितने क़तरे आँसुओं के याद-ए-दंदाँ में गिरे गौहर-ए-ख़ुश-आब आँखों से निकल कर हो गए रो दिए फ़रियाद पर मेरी बुतान-ए-संग-दिल मेरे नालों से पिघल कर मोम पत्थर हो गए इक बहाना चाहिए उन को बिगड़ने के लिए मैं ने ज़ुल्फ़ों की बलाएँ लीं मिरे सर हो गए हो गया बदमस्त मैं उन से मिलाते ही नज़र दीदा-ए-मख़मूर मेरे हक़ में साग़र हो गए आबला-पाई हमारी रंग लाई दश्त में ख़ार-ए-सहरा तिश्ना-ए-ख़ूँ हो के नश्तर हो गए वो बुत-ए-आईना-सीमा ज़ीनत-ए-पहलू है 'नाज़' आज तो हम भी नसीबे के सिकंदर हो गए