देखा करो न तुम निगह-ए-सेह्र-फ़न के साथ अच्छी नहीं ये छेड़ दिल-ए-पुर-मेहन के साथ थी दुश्मनी जो ख़ाक को मुझ ख़स्ता-तन के साथ दिल का ग़ुबार उस ने निकाला कफ़न के साथ बैठा हुआ हूँ बज़्म में इक सीम-तन के साथ साक़ी लगा दे साग़र-ए-ज़र्रीं दहन के साथ मुद्दत के बा'द आई है शाम-ए-शब-ए-विसाल क्या दिन फिरे हैं गर्दिश-ए-चर्ख़-ए-कुहन के साथ दुनिया से ना-मुराद चला है शहीद-ए-'इश्क़ लिपटे हुए हैं हसरत-ओ-अरमाँ कफ़न के साथ ठहरेगा क्या ये तीर हवाई के सामने आह-ए-रसा को लाग है चर्ख़-ए-कुहन के साथ कह दो सवाल-ए-वस्ल पे तुम फिर नहीं नहीं बल डाल कर जबीं पे उसी बाँकपन के साथ अब तक है बू-ए-गुल से मो'अत्तर मिरा दिमाग़ सोया था एक रात किसी गुल-बदन के साथ रहता है मुझ को ताज़ा बलाओं का सामना रहता हूँ जब से ज़ुल्फ़-ए-शिकन-दर-शिकन के साथ हैं साथ साथ हसरत-ओ-अरमाँ के क़ाफ़िले सू-ए-अदम चला हूँ मैं इक अंजुमन के साथ कट जाएगी ये उम्र-ए-दो-रोज़ा जहान में लुत्फ़-ओ-ख़ुशी के साथ कि रंज-ओ-मेहन के साथ वो बन के अश्क-ए-ख़ूँ मिरी आँखों से बह गया फूटा जो कोई आबला दिल की जलन के साथ ये 'नाज़' आरज़ू है कि हो हिन्द को 'उरूज देखें हम इस को फिर उसी अहद-ए-कुहन के साथ