बला-कशों पे कहाँ प्यास का अज़ाब न था वहाँ पे मना था पानी जहाँ सराब न था शिकस्त-ए-ख़्वाब का मातम था चार सू लेकिन तमाम शहर की आँखों में कोई ख़्वाब न था न आस्तीनों पे मिलता न ख़ाक-ए-मक़्तल पर ख़ुदा का शुक्र हमारा लहू शराब न था इधर गुनाह उधर हसरत-ए-गुनाह का बोझ फ़िशार-ए-क़ब्र की तमसील था शबाब न था बिका था ज़ेहन ओ दिल ओ जाँ समेत मंडी में अलग ज़मीर के क्या दाम थे हिसाब न था ब-तर्ज़-ए-ख़ास थी मक़्सूद मुझ को शोहरत-ए-आम लबों पे था मिरे सीने में इंक़लाब न था ज़माना-साज़ था 'क़ैसी' न ज़र-शनास मगर अज़ीज़ कैसे था जो शख़्स कामयाब न था