बला से गर रहे ये ना-शुनीदा By Ghazal << ये मेरा अक्स जो ठहरा तिरी... मरहला शौक़ का है लफ़्ज़-ओ... >> बला से गर रहे ये ना-शुनीदा मिरी मानो लिखो अपना क़सीदा शब-ए-ग़म काटने वालों से पूछो है कितनी शोख़ सुब्ह-ए-नौ-दमीदा करोगे तुम उसे नज़्र-ए-जुनूँ क्या क़बा-ए-ज़िंदगी ख़ुद है दरीदा सँभलना और भी दुश्वार होगा मुझे कहती है दुनिया बरगुज़ीदा Share on: