बला-ए-तीरा-शबी का जवाब ले आए बुझे चराग़ तो हम आफ़्ताब ले आए बिखर गए जो कभी चश्म-ए-इन्तिज़ार के रंग इस अंजुमन से हम इक और ख़्वाब ले आए हम इस ज़मीन पे मीज़ान-ए-अद्ल रखते हैं कहो ज़माने से फ़र्द-ए-हिसाब ले आए हर एक ग़म से सलामत गुज़र गया है दिल ख़ुदा करे कि मोहब्बत की ताब ले आए गए थे हम भी इन आँखों से माँगने क्या क्या वही हुआ कि बस इक इज़्तिराब ले आए हमारी लग़्ज़िश-ए-पैहम को राएगाँ न समझ अजब नहीं कि यही इंक़लाब ले आए न लाए कुछ भी हम आशोब-ए-दहर में 'अख़्तर' बस एक हौसला-ए-इज़तिराब ले आए