बला-कश-ए-ग़म-ए-गेती है जान-ए-ज़ार अभी हयात सर पे उठाए हुए बार अभी मिली कहाँ है तुझे तेरी रहगुज़ार अभी है याँ से दूर बहुत दूर कू-ए-यार अभी मह-ओ-नुजूम फ़सुर्दा गुल-ओ-समन गिर्यां है काएनात मिरे ग़म में सोगवार अभी कहूँ तो कैसे कहूँ उस को दौर-ए-अद्ल-ओ-अता है दार-ओ-गीर अभी जब्र-ओ-इख़्तियार अभी बलाएँ आईं सितम पर सितम हुए लेकिन बदल सका न ज़माना मिरा शिआ'र अभी सितारे डूब गए शमएँ बुझ गईं जल कर खुली हुई है मगर चश्म-ए-इन्तिज़ार अभी दयार-ए-दिल में न जाने है कब से वीरानी व-लेक शहर-ए-निगाराँ में है बहार अभी उठो सँवारो निखारो हयात-ए-नौ बख़्शो उरूस-ए-दहर की आँखों में है ख़ुमार अभी न नाम लोगे जफ़ाओं का भूल कर भी 'जलील' नहीं हुए हो जफ़ाओं से हम-कनार अभी