इक मंज़र-ए-फ़रेब-ए-मोहब्बत है प्यार है चेहरे बता रहे हैं दिलों में ग़ुबार है मैं सुन रहा हूँ बढ़ती हुई शोरिशों की चाप दुनिया समझ रही है फ़ज़ा साज़गार है चल मेरे साथ और क़दम तोल तोल कर सब्र-ओ-रज़ा की राह बड़ी पेचदार है दिन आज का सुकूँ से गुज़र जाए फ़िक्र कर हर आने वाले कल का किसे ए'तिबार है इस आस को सँभाल के फ़ानूस-ए-दिल में रख जिस आस पर हयात का दार-ओ-मदार है तरतीब दे रहे हैं चराग़ों की अंजुमन वो लोग सुब्ह-ए-नौ का जिन्हें इंतिज़ार है ऐ 'साज़' कुछ-न-कुछ तो है इस लुत्फ़-ए-ख़ास में ज़िक्र उन की अंजुमन में मिरा बार बार है