दिल का मोआ'मला वही महशर वही रहा अब के बरस भी रात का मुंतज़िर वही रहा नौमीद हो गए तो सभी दोस्त उठ गए वो सैद-ए-इंतिक़ाम था दर पर वही रहा सारा हुजूम पा-पियादा चूँ-कि दरमियाँ सिर्फ़ एक ही सवार था रहबर वही रहा सब लोग सच है बा-हुनर थे फिर भी कामयाब ये कैसा इत्तिफ़ाक़ था अक्सर वही रहा ये इर्तिक़ा का फ़ैज़ था या महज़ हादिसा मेंडक तो फ़ील-पा हुए अज़दर वही रहा सब को हुरूफ़-ए-इल्तिजा हम नज़्र कर चुके दुश्मन तो मोम हो गए पत्थर वही रहा