चाँदी वाले, शीशे वाले, आँखों वाले शहर में खो गया इक शख़्स मुझ से, देखे-भाले शहर में मंदिरों के सेहन में सदियों पुरानी घंटियाँ देवियों के हुस्न के कोहना हवाले शहर में सर्द रातों की हवा में उड़ते पत्तों के मसील कौन तेरे शब-नवर्दों को सँभाले शहर में काँच की शाख़ों पे लटके तेरी वहशत के समर तेरी वहशत के समर भी हम ने पाले शहर में दिल के रेशों से रिदा-ए-नूर बुनते मिट गए शब की फ़सलों में नहीं आसाँ उजाले शहर में